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न्यायालय के रिश्वतखोरी से डरे फरियादी

रुद्रपुर (देवरिया) :तहसीलदार न्यायालय के रिश्वतखोरी की चर्चा अधिवक्ताओ से लेकर वादकरियो तक जोरों से चल रहा है । बताया जाता है कि जिस पक्ष से कम रिश्वत मिलती है यदि दूसरे पक्ष से ज्यादे रकम मिलने पर प्रथम पक्ष की रिश्वत वापस भी कर दी जाती है और मोटी रकम वाले पक्षकार के पक्ष में आदेश पारित होता है । इस न्यायालय मे कानून नही चलता है । यहाँ न्याय के नाम पर सौदेबाजी चलता है । न्याय पाने का अधिकारी भी वही होता होता है जो सबसे ज्यादे रकम देता अनेको पत्रावलियो में न्याय को दरकिनार कर आदेश पारित किया गया है । प्रमाण स्वरूप कमलेश बनाम विंध्याचल मौजा देवकली न्यायालय तहसीलदार बाद संख्या-R०S०T/4054/2024 दिनाँक-11/09/2024 के आदेश का अवलोकन किये एक मनगढ़त टाइपशुदा आदेश पर हस्ताक्षर कर दिया है । कायमि प्रार्थनापत्र पर अपने आदेश के पैरा-2 में स्वीकार किया है कि अक्षयवर व बैद्यनाथ ने प्रार्थनापत्र के समर्थन में शपथपत्र भी प्रस्तुत किया है और इसी आदेश पेज संख्या-2 के पैरा-21 के अंत में यह टिप्पणी भी किया है कि कायमीदाता द्वारा विलंभ के संबंध मे न तो कोई सम्मुचित् कारण दर्शाया गया है और न तो शपथपत्र भी दाखिल किया गया है । यह रिश्वत पर आधारित आदेश नही तो और क्या है? यह अनेको मुकदमे इसी तरह के आदेश पारित किये गए है । तहसीलदार महोदय ने अपने आदेश के पेज संख्या-3 में दर्शाया है कि कायामीदाता मृतक अक्षयवर के पुत्र रंगनाथ पांडे द्वारा प्रस्तुत शपथपत्र दिनाक-29/08/2024 को दिया गया है । उक्त शपथपत्र रंगनाथ पांडे ने क्रोधवश दिया है । असलियत यह है कि पैतृक संपत्ति बिना आवश्यक आवश्यकता के एक गैर फरिकेन को बेनामा कर दिया है । जिसकी दीवानी न्यायालय में मनसुखी का बात विचार आधीन है । और तहसीलदार न्यायालय मे L.R.8 के अंतर्गत दफा-34 दाखिल खारिज में प्रस्तुत किया गया है । इस कारण कमलेश आदि के बहकावे में आकर रंगनाथ से शपथपत्र दिलवाया गया है। तहसीलदार महोदय ने अपने आदेश में दर्शाया है कि रंगनाथ 29/08/2024 को शपथपत्र प्रस्तुत किया । यह सरासर झूठा एवं निराधार है । असलियत यह है कि पत्रावली में बहस के सुनवाई 29/08/2024 को हुई उस समय न तो शपथपत्र ही दाखिल हुआ था । और न तो कोई अन्य साक्ष्य । अगर 29/08/2024 को दाखिल हुआ होता तो रमेश पांडे के तरफ से अवश्य उसका प्रतिउत्तर दिया गया होता। इसलिए न्यायालय ने कमलेश आदि से प्रभावित होकर न्याय को ताख पर रखते हुए और कायामीदाता को धोख़ा देते हुए नियम और कानून के विरुद्ध न्याय से हटकर आदेश पारित किया। अर्थात कायामीदाता की कायामी निरस्त कर दिया। इसके विरुद्ध उपजिलाधिकारी रूद्रपुर के यहाँ अपील विचाराधीन है। उपरोक्त पत्रावली के हर बिंदु पर यथाशीघ्र जाँच आवश्यक है।

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